Sunday, April 29, 2012


ईसाई-वामपंथियों के उकसावे पर खुलेआम हुआ गोमांस भक्षण'बीफ फेस्टिवल' का विद्यार्थी परिषद द्वारा तीखा विरोध हिंसा पर उतरे षड्यंत्रकारी गत 15 अप्रैल को हैदराबाद के ऐतिहासिक उस्मानिया विश्वविद्यालय में तब बेहद तनाव पैदा हो गया जब अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् की अगुआई में परिसर में पहली बार षड्यंत्रपूर्वक आयोजित 'बीफ फेस्टिवल' यानी 'गोमांस उत्सव' के खिलाफ विरोध प्रदर्शित किया गया। इस मौके पर वंचित वर्ग के छात्रों और अल्पसंख्यक छात्र समूहों के साथ उनका तीखा विवाद हुआ। अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के कार्यकर्त्ताओं ने इस 'उत्सव' के विरोध में पर्चे बांटे थे, जिसमें इसे कट्टर मुस्लिम और वामपंथी छात्रों की साजिश बताया गया था। घटनाक्रम के अनुसार उस दिन वंचित वर्ग के छात्र यह कहते हुए 'गोमांस उत्सव' मना रहे थे कि गोमांस पकाना और खुले में गोमांस परोसना उनकी पहचान और अधिकार है। 'उत्सव' के आयोजकों का कहना था कि यह शिक्षण संस्थानों में अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अल्पसंख्यक वर्ग के छात्रों के खाने-पीने पर 'ब्राह्मणवादी संस्कृति' थोपने के विरोधस्वरूप आयोजित किया गया था। उनके अनुसार, गोमांस देश भर के तमाम छात्रावासों में छात्रों को उपलब्ध कराया जाना चाहिए। इस सबमें कई वंचित वर्ग के शिक्षक और कांची ऐलायया जैसे वंचित वर्ग के बुद्धिजीवी शामिल थे। राजनीतिक षड्यंत्र अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के छात्रों ने इस 'उत्सव' का कड़ा विरोध किया। उनका कहना था कि यह कृत्य भारतीय संस्कृति के खिलाफ और हिन्दुओं द्वारा माता के रूप में पूजी जाने वाली गाय का अपमान है। यह घटिया राजनीतिक चाल है। इससे बड़ी संख्या में छात्रों की भावनाओं को ठेस पहुंचती है। वर्ग विशेष और जाति के नाम पर इस तरह का दुष्प्रचार करके उन्हें बांटना घोर निंदनीय है। उस दिन शाम साढ़े छह बजे के आसपास बेहद तनाव पैदा हो गया जब बड़ी संख्या में छात्र अम्बेडकर छात्रावास पहुंचे, जहां 'दलित छात्र संघ' ने 'उत्सव' के लिए व्यापक व्यवस्था की थी। विश्वविद्यालय के कई शिक्षक, गैर शिक्षक कर्मचारी और वामपंथी वंचित वर्ग के छात्रों के साथ अपनी एकजुटता व्यक्त करते हुए वहां मौजूद थे। विद्यार्थी परिषद के कार्यकर्त्ता शांतिपूर्वक छात्रावास के सामने विरोध कर रहे थे कि अचानक पत्थरबाजी शुरू हो गई, जिसके परिणामस्वरूप पुलिस को हस्तक्षेप करना पड़ा। लाठी चार्ज और आंसू गैस का इस्तेमाल किया गया जिसमें कई लोग घायल हो गए। छल से किए गए हमले से साफ है कि मुस्लिम, वंचित वर्ग और ईसाई छात्रों का गठजोड़ विश्वविद्यालय के छात्रों को पंथ और जाति के नाम पर बांट रहा है। उनका इरादा छात्रों को उकसाना, हिन्दुओं की पूज्य गाय का अपमान करके उत्तेजना पैदा करना और अशांति फैलाना था। मुम्बई की प्रसिद्ध लेखिका फरजाना वेर्से ने सामाजिक वेबसाइट ट्विटर पर लिखा कि 'यह पूरा घटनाक्रम दोहरे मापदंड की ओर इशारा करता है। 'बीफ फेस्टिवल' के नाम पर राजनीति की जा रही है।' सेकुलर इतिहासकार इरफान हबीब ने इस 'फेस्टिवल' के संदर्भ में ट्विटर पर अपनी टिप्पणी में कहा कि 'इसमें उत्सव जैसा क्या है? इसकी भरपूर निंदा होनी चाहिए।' दुष्प्रचार का सहारा इस 'उत्सव' में सक्रिय अधिकांश छात्रों ने इस आयोजन के बाद स्वीकार किया कि वे अपने घरों में गोमांस नहीं खाते। हैदराबाद से प्रकाशित अखबारों के विश्लेषणों से पता चलता है कि यह साजिश विश्वविद्यालय की छात्र राजनीति से जुड़ी थी। अलग तेलंगाना राज्य की मांग को लेकर चल रहे आंदोलन के संदर्भ में वंचित वर्ग के नेताओं का मानना है कि तेलंगाना राष्ट्र समिति के नेता चन्द्रशेखर राव सिर्फ ऊंची जाति के लोगों को साथ लेकर चल रहे हैं। 'उत्सव' के बहाने 'दलित एकता' के माध्यम से राजनीतिक फायदा उठाना उनका मूल उद्देश्य हो सकता है। दूसरे, अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद द्वारा भ्रष्टाचार और अलग तेलंगाना राज्य की मांग पर चलाया जा रहा आंदोलन वामपंथी दलों के आंदोलन से ज्यादा प्रभावशाली बन चुका है। ईसाई मिशनरियों और वंचित वर्ग के तथाकथित बुद्धिजीवियों की इस साजिश ने आमतौर पर शांतिपूर्ण रहने वाले एक छात्रावास में बेहद अशांति फैलाई है। हिन्दू आस्था पर चोट करने वाले अभियान के बहाने जो मर्जी खाने के अपने अधिकार की मांग पर छात्रों को भेड़-बकरियों की तरह जुटाया गया जबकि यह पूरी तरह राजनीतिक साजिश है। तथाकथित वामपंथी बुद्धिजीवी तो पहले से ही दुष्प्रचार करते आ रहे हैं कि 'वेदों के अनुसार हिन्दू ऋषि-मुनि मांसभक्षण करते थे। हिन्दुओं को इस पर आपत्ति करने का अधिकार नहीं है।' अगले दिन यानी 16 अप्रैल को अभाविप ने परिसर में बंद आयोजित किया। परिषद के एक प्रतिनिधिमंडल ने विश्वविद्यालय के कुलपति श्री सत्यनारायण को एक ज्ञापन सौंपकर मांग की कि परिसर के अपने ही समाज के अंग वंचित वर्ग के छात्रों का हिंसा में हाथ नहीं था बल्कि बाहर से आए अपराधी तत्वों ने हिंसा फैलाई थी। इनको शीघ्र पकड़ा जाना चाहिए और पुलिस द्वारा अभाविप कार्यकर्ताओं पर ही लगाए गए तमाम अभियोग वापस लिए जाने चाहिए। क्योंकि अभाविप का हिंसा से दूर तक का भी नाता नहीं है। परिषद ने मांग की कि परिसर की शांति भंग करने की साजिश रची गई है। कुछ शिक्षकों या अन्य गैर शिक्षक कर्मचारियों ने 'उत्सव' में भाग लेकर जो हानि पहुंचाई है, उसकी पूरी जांच की जानी चाहिए। परिषद के अनुसार, वंचित वर्ग के छात्रों से 'उत्सव' के नाम पर जबरन चंदा वसूला गया था। दुखद बात यह है कि तेलंगाना राज्य गठन की मांग पर हुए आंदोलनों में बड़ी संख्या में परिसर के छात्रों ने अपनी आहुति दी है। बजाय संवेदना व्यक्त करने के, ऐसे अपमानजनक 'उत्सव' मनाने वाले जश्न मनाते हैं! यह शहीद विद्यार्थियों का घोर अपमान है। उल्लेखनीय है कि अंग्रेज दो मुद्दों के साथ इस देश में दाखिल हुए थे- (1) इस देश की समृद्धि लूटकर अपने देश के लिए प्राकृतिक संसाधन जुटाना, और (2) हमारी आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक और पांथिक सद्भावना को ध्वस्त करने के लिए ईसाई और यूरोपीय संस्कृति का प्रसार करना। इन दोनों उद्देश्यों की पूर्ति के लिए उन्होंने गोहत्या और गोमांस खाने को प्रमुख हथियार की तरह इस्तेमाल किया। हैदराबाद में ठीक वही दूषित भावना फैलाने की साजिश रची जा रही है। इसे पहचानकर इसका हर स्तर पर विरोध किया जाना चाहिए।

Saturday, April 28, 2012



अंग्रेजों ने भारतीय सभ्यता को खत्म करने के लिये भारतीय गुरुकुल प्रणाली और भारतीय कृषि प्रणाली पर आक्रमण किया, एक अंग्रेज भारत रॉबर्ट क्लाइव ने कृषि प्रणाली पर व्यापक अनुसंधान किया. 

अनुसंधान के परिणाम के रूप में इस प्रकार है:

* गाय भारतीय कृषि का आधार है और भारतीय कृषि को गाय की मदद के बिना निष्पादित नहीं किया जा सकता है.
* भारतीय कृषि की रीढ़ तोड़ने के लिये गायों को समाप्त करना जरूरी है.
* वह अनुमान था कि बंगाल में गायों की संख्या पुरुषों की संख्या से अधिक थी. यही समान स्थिति भारत के अन्य हिस्सों में थी.

भारत को अस्थिर करने की योजना का एक भाग के रूप में गोहत्या शुरू की गई. भारत में पहली क़साईख़ाना 1760 में शुरू किया गया था, एक क्षमता के साथ प्रति दिन 30,000 (हज़ार तीस केवल), कम से कम एक करोड़ गायों को एक साल में मारा गया, गायों की बलि के कारण भारत में कृषि समाप्त हो रही थी, न तो यहाँ कोई खाद थी गोबर के रूप में और न ही गोमूत्र की तरह कीटनाशक, रॉबर्ट क्लाइव ने भारत छोडने से पहले काफ़ी संख्या में कसाईखाने खोल दिये थे
1910 में 350 बूचड़खाने जो दिन से लेकर रात तक गौ कत्ल करते थे उनके परिणाम के रूप में भारत व्यावहारिक रूप से पशुओं के महरूम होता गया. इस प्रकार यूरिया और फास्फेट जैसे औद्योगिक खाद भारत की खेती में जगह लेने लगे.

एक सवाल के जवाब में गांधीजी ने कहा था कि जिस दिन भारत स्वतंत्रत हो जायेगा उसी दिन से भारत में सभी वध घरों को बंद किया जाएगा, 1929 में एक सार्वजनिक सभा में नेहरू ने कहा कि अगर वह भारत का प्रधानमंत्री बने तो वह पहला काम इन कसाईखानो को बंद करने का करेंगे, इन 63 सालों में 75 करोड गायों को मौत के घाट उतारा जा चुका है.. 1947 के बाद से संख्या 350 से 36,000 तक बढ़ गई है सरकार की अनुमति से 36,000 कतलखाने चल रहे हैं इसके इलावा जो अवैध रूप से चल रहे है वो अलग है उनकी संख्या की कोई पूरी जानकारी नही है

...ध्यान दे,ध्यान दे,ध्यान दे......
इतफ़ाक समझे या सच ।
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इंदिरा गांधी को एक संत ने श्राप दे
दिया था |और वो सच हुआ था !
1966 के समय में एक़ संत थे
क्रपात्री जी महाराज।

इंद्रा गांधी के लिये उस वकत चुनाव जीतना बहुत मुश्किल था ।क्रपात्री जी
महाराज के आशीर्वाद से इंद्रा गांधी चुनाव जीती ।
इंद्रा ग़ांधी ने उनसे वादा किया था चुनाव जीतने के बाद गाय के सारे
कत्ल खाने बंद हो जायेगें ।जो अंग्रेजो के समय से चल रहे हैं ।

और जैसा की आप जानते हैं । वादे से मुकरना नेहरु परिवार की खानदानी आदत है ।
चुनाव जितने के बाद कृपात्री जी महाराज ने कहा और मेरा काम करो न गाय के
सारे कत्ल खाने बंद करो । इंद्रा ग़ांधी ने धोखा दिया । कोई कत्लखाना बंद
नहीं किया गया ।
(तब रोज कि 15000 गाय कत्ल
की जाती थी.Ab 26000 kati jati
hai.
आज तो मनमोहन सिंह ने गाय का मास बेचने वाले देशो भारत को पुरी दुनिया
में तीसरे नंबर पर ला दिया है ।)

खैर तो फ़िर
किर्पत्री जी महाराज का धैर्य टूट गया !
क्रपात्री जी ने एक दिन लाखो भगतो के सथ संसद क़ा घिराव कर दिया |और कहा
की गाय के कतलखाने बंद होगे इसके लिये
बिल पास करो |

bill pass karna to door
इंद्रा गांधी ने उन पर भगतो के उपर गोलिया चलवा दी
सैंकड़ो गौ सेवको मरे गए !
तब क्र्पात्री जे ने उन्हे श्राप दे
दिया की जिस तरह
तुमने गौ सेवको पर गोलिया चलवाई है
उसी तरह तुम मारी जाओ गी.

और (ये अजीब ही इत्फ़ाक हैं.)जिस दिन इंद्रा गांधी ने गोलिया चलवाई थी उस दिन
गोपा अष्टमी थी.
(गाय के पूजा का सब्से बड़ा दिन) और जिस
दिन इंद्रा गांधी को गोली मरी गई
उस दिन भी गोपा अष्टमी थी !