गुरुवार 10 मई भारत की आजादी की पहली लड़ाई की 158 वीं वर्षगांठ है। आज के दिन जहां देश भर में 10 मई 1857 में अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ पहली बार तलवार उठाने वाले बहादुरशाह जफर, नाना साहेब, रानी लक्ष्मीबाई और बाबू वीर कुंवर सिंह की कुर्बानी को याद कर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की जायेगी, वहीं सिदो कान्हु मुर्मू विश्वविद्यालय के शिक्षक इनकी सम्मान की खातिर राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान व प्रशिक्षण परिषद, नई दिल्ली (एनसीईआरटी) के खिलाफ दुमका कोर्ट में मुकदमा दायर करेंगे। 10 मई की पूर्व संध्या पर विश्वविद्यालय के स्नातकोत्तर मनोविज्ञान विभाग में 1857 की लड़ाई में देश के उक्त महापुरुषों की भूमिका पर हुई चर्चा के बाद विभागाध्यक्ष डॉ.स्वतंत्र कुमार सिंह और विश्वविद्यालय वाद विवाद परिषद के अध्यक्ष डॉ.अजय सिन्हा द्वारा यह घोषणा की गयी है। दरअसल, इस चर्चा में एनसीईआरटी द्वारा वर्ष 2007 में प्रकाशित 12 वीं कक्षा के इतिहास की पुस्तक को शामिल किया गया था। वाद विवाद परिषद के अध्यक्ष डॉ.सिन्हा ने बताया कि पुस्तक का 11 वां अध्याय 1857 के संग्राम व इसके नायकों के जीवनी पर आधारित है। पुस्तक में (भारतीय इतिहास के कुछ विषय: भाग तीन, पृष्ठ संख्या 292) बताया गया है कि झांसी की रानी ने लाचारी में आम जनता के दवाब में बगावत का नेतृत्व संभाला था। ऐसी ही स्थिति बिहार में कुंवर सिंह और कानपुर में नाना साहिब की थी। वहीं बहादुर शाह के बारे में लिखा गया है विद्रोह की खबर पर वह भयभीत दिखायी दिये, जो गलत है। डॉ.सिन्हा ने कहा कि यह हमारे महापुरुषों का अपमान है जो बर्दाश्त करने योग्य नहीं है। एनसीईआरटी को इसे वापस लेना होगा। उन्होंने कहा कि इससे पूर्व एनसीईआरटी की ही पुस्तकों में ठीक इससे विपरीत बात कहीं गयी है जो पुष्ट करता है कि वर्तमान पुस्तक राजनीति से प्रेरित है। वहीं स्नातकोत्तर मनोविज्ञान विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ.सिंह ने कहा कि देश के उन महापुरुषों के बारे में यह बात कि उन्होंने किसी के दवाब में आकर तलवार उठायी थी सरासर गलत है जिनका उदाहरण देकर हम बच्चों को वीरता का पाठ पढ़ाते है। पुस्तक में समाहित उक्त कथन समाज को दिगभ्रमित करने वाला है। सो, उक्त कथन के विरोध व संबंधित महापुरुषों के सम्मान में एनसीईआरटी के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया जायेगा। 1857 की इस चर्चा में विश्वविद्यालय के सामाजिक विज्ञान के डीन सह स्नातकोत्तर इतिहास विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो.डॉ.योगेन्द्र प्रसाद राय, इतिहास के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ.संजीव कुमार और प्रो.अमिता भी शामिल थी। विभागाध्यक्ष डॉ.राय ने भी मामले की भर्त्सना करते हुए कहा कि इतिहास लिखने का उद्देश्य समाज को तोड़ना नहीं बल्कि समाज को प्रगति पथ पर अग्रसरित करना होना चाहिए। उक्त अध्याय में जो विचार सामने आये है वह समाज को दिगभ्रमित व बच्चों के मन को दूषित करने वाला है। बता दें कि 27-28 मार्च 2011 को विवि के इतिहास विभाग के तत्वावधान में यहां आयोजित एक राष्ट्रीय सेमिनार में भी वाद विवाद परिषद के अध्यक्ष डॉ.सिन्हा ने मामले पर आवाज उठाते हुए इतिहासकारों पर राजनीति से प्रेरित होकर इतिहास लिखने का आरोप जड़ा था।
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