Friday, May 10, 2013

संत गोपाल दास करनाल में आमरण अनशन शुरु गोचर भूमि की मुक्ति और गोचर बिकास बोर्ड के गठन के लिए


संत गोपाल दास करनाल में आमरण अनशन शुरु गोचर भूमि की मुक्ति और गोचर बिकास बोर्ड के गठन के लिए


संत गोपाल दास करनाल में आमरण अनशन शुरु गोचर भूमि की मुक्ति और गोचर बिकास बोर्ड के गठन के लिए


कहां गई गोचर भूमि

इंग्लैंड हरेक पशु के लिए औसतन 3.5 एकड़ जमीन चरने के लिए अलग रखता है। जर्मनी 8 एकड़, जापान 6.7 एकड़ और अमेरिका हर पशु के लिए औसतन 12 एकड़ जमीन चरनी के लिए अलग रखता है। इसकी तुलना में भारत में एक पशु के लिए चराऊ जमीन 1920 में 0.78 एकड़ अर्थात अंदाजन पौने एकड़ थी। (Agricultural Statistics of India, 1920/21, Vol.1, Table 1, 2 – 5)
अब यह संख्या घटकर प्रति पशु 0.09 एकड़ हो गई है। अर्थात अमेरिका में 12 एकड़ पर 1 पशु चरता है, जबकि अपने यहां एक एकड़ पर 11 पशु चरते हैं (India 1947, Page 172-187)। सिर्फ एक ही साल में अपने यहां साढे सात लाख एकड़ जमीन पर के चरागाहों का नाश कर दिया गया। 1968 में चराऊ जमीने 3 करोड़ 32 लाख 50 हजार एकड़ जमीन पर थी, जो 1969 में घटकर 3 करोड़ 25 लाख एकड़ हो गई। (India 1947, page 172) और पांच सालों में अर्थात 1974 में वे और अढ़ाई लाख एकड़ कम होकर 3 करोड़ 22 लाख 50 हजार एकड़ हो गई। इस तरह सिर्फ छह सालों में 10 लाख एकड़ चराऊ जमीनों का नाश किया गया। फिर भी किसानों का विकास करने की बढ़ाई हांकने वाले, गरीबों को रोजी दिलाने का वादा करने वाले, विशेषकर किसानों, पशुपालकों व गांव के कारीगरों के वोट से चुनाव जीतने वाले किसी भी विधानसभा या लोकसभा के सदस्य ने उसका न तो विरोध किया है, न ही उसके प्रति चिन्ता व्यक्त की है।

Saturday, February 16, 2013

देसी गाय का महत्व्

देसी गायों के बारे में

ए1ए2 दूध विज्ञान :
(सुबोध कुमार email:subodh1934@gmail.com)
आधुनिक विज्ञान का यह मानना है कि सृष्टि के आदि काल में, भूमध्य रेखा के दोनो ओर प्रथम एक गर्म भूखंड उत्पन्न हुवा था ..इसे भारतीय परम्परा मे जम्बुद्वीप नाम दिया जाता है. सभी स्तन धारी भूमी पर पैरों से चलने वाले प्राणी दोपाए, चौपाए जिन्हें वैज्ञानिक भाशा मे अ‍ॅग्युलेट मेमल ungulate mammal के नाम से जाना जाता है, वे इसी जम्बू द्वीप पर उत्पन्न हुवे थे.इस प्रकार सृष्टि में सब से प्रथम मनुष्य और गौ का इसी जम्बुद्वीप भूखंड पर उत्पन्न होना माना जाता है.
इस प्रकार यह भी सिद्ध होता है कि भारतीय गाय ही विश्व की मूल गाय है. इसी मूल भारतीय गाय का लगभग 8000 साल पहले, भारत जैसे गर्म क्षेत्रों से योरुप के ठंडे क्षेत्रों के लिए पलायन हुवा माना जाता है.
जीव विज्ञान के अनुसार भारतीय गायों के 209 तत्व के डीएनए DNA में 67 पद पर स्थित एमिनो एसिड प्रोलीन Proline पाया जाता है. इन गौओं के ठंडे यूरोपीय देशों को पलायन में भारतीय गाय के डीएनए में प्रोलीन Proline एमीनोएसिड हिस्टीडीन Histidine के साथ उत्परिवर्तित हो गया. इस प्रक्रिया को वैज्ञानिक भाषा में म्युटेशन Mutation कहते हैं.
(Ref Ng-Kwai-Hang KF,Grosclaude F.2002.:Genetic polymorphism of milk proteins . In:PF Fox and McSweeney PLH (eds),Advanced Dairy Chemistry,737-814, Kluwer Academic/Plenum Publishers, New York)
(देखें-Kwai-रुको KF, Grosclaude F.2002:. दूध प्रोटीन की जेनेटिक बहुरूपता. में: पीएफ फॉक्स और McSweeney PLH सम्पादित लेख “ उन्नत डेयरी रसायन विज्ञान ,737-814, Kluwer शैक्षणिक / सर्वागीण सभा प्रकाशक, न्यूयॉर्क)
1. मूल गाय के दूध में Proline अपने स्थान 67 पर बहुत दृढता से आग्रह पूर्वक अपने पडोसी स्थान 66 पर स्थित अमीनोएसिड आइसोल्यूसीन Isoleucine से जुडा रहता है. परन्तु जब प्रोलीन के स्थान पर हिस्टिडीन आ जाता है तब इस हिस्टिडीन में अपने पडोसी स्थान 66 पर स्थित आइसोल्युसीन से जुडे रहने की प्रबल इच्छा नही पाई जाती. इस स्थिति में यह एमिनो एसिड Histidine, मानव शरीर की पाचन कृया में आसानी से टूट कर बिखर जाता है. इस प्रक्रिया से एक 7 एमीनोएसिड का छोटा प्रोटीन स्वच्छ्न्द रूप से मानव शरीर में अपना अलग आस्तित्व बना लेता है. इस 7 एमीनोएसिड के प्रोटीन को बीसीएम 7 BCM7 (बीटा Caso Morphine7) नाम दिया जाता है.
2. BCM7 एक Opioid (narcotic) अफीम परिवार का मादक तत्व है. जो बहुत शक्तिशाली Oxidant ऑक्सीकरण एजेंट के रूप में मानव स्वास्थ्य पर अपनी श्रेणी के दूसरे अफीम जैसे ही मादक तत्वों जैसा दूरगामी दुष्प्रभाव छोडता है. जिस दूध में यह विषैला मादक तत्व बीसीएम 7 पाया जाता है, उस दूध को वैज्ञानिको ने ए1 दूध का नाम दिया है. यह दूध उन विदेशी गौओं में पाया गया है जिन के डीएन मे 67 स्थान पर प्रोलीन न हो कर हिस्टिडीन होता है.
आरम्भ में जब दूध को बीसीएम7 के कारण बडे स्तर पर जानलेवा रोगों का कारण पाया गया तब न्यूज़ीलेंड के सारे डेरी उद्योग के दूध का परीक्षण आरम्भ हुवा. सारे डेरी दूध पर करे जाने वाले प्रथम अनुसंधान मे जो दूध मिला वह बीसीएम7 से दूषित पाया गया. इसी लिए यह सारा दूध ए1 कह्लाया
तदुपरांत ऐसे दूध की खोज आरम्भ हुई जिस मे यह बीसीएम7 विषैला तत्व न हो. इस दूसरे अनुसंधान अभियान में जो बीसीएम7 रहित दूध पाया गया उसे ए2 नाम दिया गया. सुखद बात यह है कि विश्व की मूल गाय की प्रजाति के दूध मे, यह विष तत्व बीसीएम7 नहीं मिला,
इसी लिए देसी गाय का दूध ए2 प्रकार का दूध पाया जाता है.
देसी गाय के दूध मे यह स्वास्थ्य नाशक मादक विष तत्व बीसीएम7 नही होता. आधुनिक वैज्ञानिक अनुसंधान से अमेरिका में यह भी पाया गया कि ठीक से पोषित देसी गाय के दूध और दूध के बने पदार्थ मानव शरीर में कोई भी रोग उत्पन्न नहीं होने देते. भारतीय परम्परा में इसी लिए देसी गाय के दूध को अमृत कहा जाता है. आज यदि भारतवर्ष का डेरी उद्योग हमारी देसी गाय के ए2 दूध की उत्पादकता का महत्व समझ लें तो भारत सारे विश्व डेरी दूध व्यापार में सब से बडा दूध निर्यातक देश बन सकता है.
देसी गाय की पहचान
आज के वैज्ञानिक युग में , यह भी महत्व का विषय है कि देसी गाय की पहचान प्रामाणिक तौर पर हो सके.साधारण बोल चाल मे जिन गौओं में कुकुभ , गल कम्बल छोटा होता है उन्हे देसी नही माना जात, और सब को जर्सी कह दिया जाता है.
प्रामाणिक रूप से यह जानने के लिए कि कौन सी गाय मूल देसी गाय की प्रजाति की हैं गौ का डीएनए जांचा जाता है. इस परीक्षण के लिए गाय की पूंछ के बाल के एक टुकडे से ही यह सुनिश्चित हो जाता है कि वह गाय देसी गाय मानी जा सकती है या नहीं . यह अत्याधुनिक विज्ञान के अनुसन्धान का विषय है.
पाठकों की जान कारी के लिए भारत सरकार से इस अनुसंधान के लिए आर्थिक सहयोग के प्रोत्साहन से भारतवर्ष के वैज्ञानिक इस विषय पर अनुसंधान कर रहे हैं और निकट भविष्य में वैज्ञानिक रूप से देसी गाय की पहचान सम्भव हो सकेगी. इस महत्वपूर्ण अनुसंधान का कार्य दिल्ली स्थित महाऋषि दयानंद गोसम्वर्द्धन केंद्र की पहल और भागीदारी पर और कुछ भारतीय वैज्ञानिकों के निजी उत्साह से आरम्भ हो सका है.
ए1 दूध का मानव स्वास्थ्य पर दुष्प्रभाव
जन्म के समय बालक के शरीर मे blood brain barrier नही होता . माता के स्तन पान कराने के बाद तीन चार वर्ष की आयु तक शरीर में यह ब्लडब्रेन बैरियर स्थापित हो जाता है .इसी लिए जन्मोपरांत माता के पोषन और स्तन पान द्वारा शिषु को मिलने वाले पोषण का, बचपन ही मे नही, बडे हो जाने पर भविष्य मे मस्तिष्क के रोग और शरीर की रोग निरोधक क्षमता ,स्वास्थ्य, और व्यक्तित्व के निर्माण में अत्यधिक महत्व बताया जाता है .
बाल्य काल के रोग Pediatric disease.
आजकल भारत वर्ष ही में नही सारे विश्व मे , जन्मोपरान्त बच्चों में जो Autism बोध अक्षमता और Diabetes type1 मधुमेह जैसे रोग बढ रहे हैं उन का स्पष्ट कारण ए1 दूध का बीसीएम7 पाया गया है.
वयस्क समाज के रोग –Adult disease
मानव शरीर के सभी metabolic degenerative disease शरीर के स्वजन्य रोग जैसे उच्च रक्त चाप high blood pressure हृदय रोग Ischemic Heart Disease तथा मधुमेह Diabetes का प्रत्यक्ष सम्बंध बीसीएम 7 वाले ए1 दूध से स्थापित हो चुका है.यही नही बुढापे के मांसिक रोग भी बचपन में ए1 दूध का प्रभाव के रूप मे भी देखे जा रहे हैं.
दुनिया भर में डेयरी उद्योग आज चुपचाप अपने पशुओं की प्रजनन नीतियों में '' अच्छा दूध अर्थात् BCM7 मुक्त ए2 दूध “ के उत्पादन के आधार पर बदलाव ला रही हैं. वैज्ञानिक शोध इस विषय पर भी किया जा रहा है कि किस प्रकार अधिक ए2 दूध देने वाली गौओं की प्रजातियां विकसित की जा सकें.
डेरी उद्योग की भूमिका
मुख्य रूप से यह हानिकारक ए1 दूध होल्स्टिन फ्रीज़ियन प्रजाति की गाय मे ही मिलता है, यह भैंस जैसी दीखने वाली, अधिक दूध देने के कारण सारे डेरी उद्योग की पसन्दीदा गाय है. होल्स्टीन फ्रीज़ियन दूध के ही कारण लगभग सारे विश्व मे डेरी का दूध ए1 पाया गया . विश्व के सारे डेरी उद्योग और राजनेताओं की आज यही कठिनाइ है कि अपने सारे ए1 दूध को एक दम कैसे अच्छे ए2 दूध मे परिवर्तित करें. आज विश्व का सारा डेरी उद्योग भविष्य मे केवल ए2 दूध के उत्पादन के लिए अपनी गौओं की प्रजाति मे नस्ल सुधार के नये कार्य क्रम चला रहा है. विश्व बाज़ार मे भारतीय नस्ल के गीर वृषभों की इसी लिए बहुत मांग भी हो गयी है. साहीवाल नस्ल के अच्छे वृषभ की भी बहुत मांग बढ गयी है.
सब से पहले यह अनुसंधान न्यूज़ीलेंड के वैज्ञानिकों ने किया था.परन्तु वहां के डेरी उद्योग और सरकारी तंत्र की मिलीभगत से यह वैज्ञानिक अनुसंधान छुपाने के प्रयत्नों से उद्विग्न होने पर, 2007 मे Devil in the Milk-illness, health and politics A1 and A2 Milk” नाम की पुस्तक Keith Woodford कीथ वुड्फोर्ड द्वारा न्यूज़ीलेंड मे प्रकाशित हुई. उपरुल्लेखित पुस्तक में विस्तार से लगभग 30 वर्षों के विश्व भर के आधुनिक चिकित्सा विज्ञान और रोगों के अनुसंधान के आंकडो के आधार पर यह सिद्ध किया जा सका है कि बीसीएम7 युक्त ए1 दूध मानव समाज के लिए विष तुल्य है.
इन पंक्तियों के लेखक ने भारतवर्ष मे 2007 में ही इस पुस्तक को न्युज़ीलेंड से मंगा कर भारत सरकार और डेरी उद्योग के शीर्षस्थ अधिकारियों का इस विषय पर ध्यान आकर्षित कर के देसी गाय के महत्व की ओर वैज्ञानिक आधार पर प्रचार और ध्यानाकर्षण का एक अभियान चला रखा है.परन्तु अभी भारत सरकार ने इस विषय को गम्भीरता से नही लिया है.
डेरी उद्योग और भारत सरकार के गोपशु पालन विभाग के अधिकारी व्यक्तिगत स्तर पर तो इस विषय को समझने लगे हैं परंतु भारतवर्ष की और डेरी उद्योग की नीतियों में बदलाव के लिए जिस नेतृत्व की आवश्यकता होती है उस के लिए तथ्यों के अतिरिक्त सशक्त जनजागरण भी आवश्यक होता है. इस के लिए जन साधारण को इन तथ्यों के बारे मे अवगत कराना भारत वर्ष के हर देश प्रेमी गोभक्त का दायित्व बन जाता है.
विश्व मंगल गो ग्रामयात्रा इसी जन चेतना जागृति का शुभारम्भ है.
देसी गाय से विश्वोद्धार
भारत वर्ष में यह विषय डेरी उद्योग के गले आसानी से नही उतर रहा, हमारा समस्त डेरी उद्योग तो हर प्रकार के दूध को एक जैसा ही समझता आया है. उन के लिए देसी गाय के ए2 दूध और विदेशी ए1 दूध देने वाली गाय के दूध में कोई अंतर नही होता था. गाय और भैंस के दूध में भी कोई अंतर नहीं माना जाता. सारा ध्यान अधिक मात्रा में दूध और वसा देने वाले पशु पर ही होता है. किस दूध मे क्या स्वास्थ्य नाशक तत्व हैं, इस विषय पर डेरी उद्योग कभी सचेत नहीं रहा है. सरकार की स्वास्थ्य सम्बंदि नीतियां भी इस विषय पर केंद्रित नहीं हैं.
भारत में किए गए NBAGR (राष्ट्रीय पशु आनुवंशिक संसाधन ब्यूरो) द्वारा एक प्रारंभिक अध्ययन के अनुसार यह अनुमान है कि भारत वर्ष में ए1 दूध देने वाली गौओं की सन्ख्या 15% से अधिक नहीं है. भरत्वर्ष में देसी गायों के संसर्ग की संकर नस्ल ज्यादातर डेयरी क्षेत्र के साथ ही हैं .
आज सम्पूर्ण विश्व में यह चेतना आ गई है कि बाल्यावस्था मे बच्चों को केवल ए2 दूध ही देना चाहिये. विश्व बाज़ार में न्युज़ीलेंड, ओस्ट्रेलिया, कोरिआ, जापान और अब अमेरिका मे प्रमाणित ए2 दूध के दाम साधारण ए1 डेरी दूध के दाम से कही अधिक हैं .ए2 से देने वाली गाय विश्व में सब से अधिक भारतवर्ष में पाई जाती हैं. यदि हमारी देसी गोपालन की नीतियों को समाज और शासन का प्रोत्साहन मिलता है तो सम्पूर्ण विश्व के लिए ए2 दूध आधारित बालाहार का निर्यात भारतवर्ष से किया जा सकता है. यह एक बडे आर्थिक महत्व का विषय है.
छोटे ग़रीब किसनों की कम दूध देने वाली देसी गाय के दूध का विश्व में जो आर्थिक महत्व हो सकता है उस की ओर हम ने कई बार भारत सरकार का ध्यान दिलाने के प्रयास किये हैं. परन्तु दुख इस बात का है कि गाय की कोई भी बात कहो तो उस मे सम्प्रदायिकता दिखाई देती है, चाहे कितना भी देश के लिए आर्थिक और समाजिक स्वास्थ्य के महत्व का विषय हो.
http://98.130.113.92/Goraksha_Aur_Uska_Mahatv.mp3

Friday, January 25, 2013

14 अगस्त 1947 कि रात को आजादी नहीं आई बल्कि ट्रान्सफर ऑफ़ पॉवर का एग्रीमेंट हुआ था


Transfer of Power Agreement" को जाने और दुसरो को बताएं
14 अगस्त 1947 कि रात को आजादी नहीं आई बल्कि ट्रान्सफर ऑफ़ पॉवर का एग्रीमेंट हुआ था

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सत्ता के हस्तांतरण की संधि ( Transfer of Power Agreement ) यानि भारत के आज़ादी की संधि | ये इतनी खतरनाक संधि है की अगर आप अंग्रेजों द्वारा सन 1615 से लेकर 1857 तक किये

गए सभी 565 संधियों या कहें साजिस को जोड़ देंगे तो उस से भी ज्यादा खतरनाक संधि है ये | 14 अगस्त 1947 की रात को जो कुछ हुआ है वो आजादी नहीं आई बल्कि ट्रान्सफर ऑफ़ पॉवर का

एग्रीमेंट हुआ था पंडित नेहरु और लोर्ड माउन्ट बेटन के बीच में | Transfer of Power और Independence ये दो अलग चीजे है | स्वतंत्रता और सत्ता का हस्तांतरण ये दो अलग चीजे है |

और सत्ता का हस्तांतरण कैसे होता है ? आप देखते होंगे क़ि एक पार्टी की सरकार है, वो चुनाव में हार जाये, दूसरी पार्टी की सरकार आती है तो दूसरी पार्टी का प्रधानमन्त्री जब शपथ ग्रहण करता है,

तो वो शपथ ग्रहण करने के तुरंत बाद एक रजिस्टर पर हस्ताक्षर करता है, आप लोगों में से बहुतों ने देखा होगा, तो जिस रजिस्टर पर आने वाला प्रधानमन्त्री हस्ताक्षर करता है, उसी रजिस्टर को

ट्रान्सफर ऑफ़ पॉवर की बुक कहते है और उस पर हस्ताक्षर के बाद पुराना प्रधानमन्त्री नए प्रधानमन्त्री को सत्ता सौंप देता है | और पुराना प्रधानमंत्री निकल कर बाहर चला जाता है | यही

नाटक हुआ था 14 अगस्त 1947 की रात को 12 बजे | लार्ड माउन्ट बेटन ने अपनी सत्ता पंडित नेहरु के हाथ में सौंपी थी, और हमने कह दिया कि स्वराज्य आ गया | कैसा स्वराज्य और काहे का

स्वराज्य ? अंग्रेजो के लिए स्वराज्य का मतलब क्या था ? और हमारे लिए स्वराज्य का मतलब क्या था ? ये भी समझ लीजिये | अंग्रेज कहते थे क़ि हमने

स्वराज्य दिया, माने अंग्रेजों ने अपना राज तुमको सौंपा है ताकि तुम लोग कुछ दिन इसे चला लो जब जरुरत पड़ेगी तो हम दुबारा आ जायेंगे |

ये अंग्रेजो का interpretation (व्याख्या) था | और हिन्दुस्तानी लोगों की व्याख्या क्या थी कि हमने स्वराज्य ले लिया | और इस संधि के अनुसार ही भारत के दो टुकड़े किये गए और भारत और

पाकिस्तान नामक दो Dominion States बनाये गए हैं | ये Dominion State का अर्थ हिंदी में होता है एक बड़े राज्य के अधीन एक छोटा राज्य, ये शाब्दिक अर्थ है और भारत के सन्दर्भ में इसका

असल अर्थ भी यही है | अंग्रेजी में इसका एक अर्थ है "One of the self-governing nations in the British Commonwealth" और दूसरा "Dominance or power through legal authority "|

Dominion State और Independent Nation में जमीन आसमान का अंतर होता है | मतलब सीधा है क़ि हम (भारत और पाकिस्तान) आज भी अंग्रेजों के अधीन/मातहत ही हैं | दुःख तो ये होता

है की उस समय के सत्ता के लालची लोगों ने बिना सोचे समझे या आप कह सकते हैं क़ि पुरे होशो हवास में इस संधि को मान लिया या कहें जानबूझ कर ये सब स्वीकार कर लिया | और ये जो

तथाकथित आज़ादी आयी, इसका कानून अंग्रेजों के संसद में बनाया गया और इसका नाम रखा गया Indian Independence Act यानि भारत के स्वतंत्रता का कानून | और ऐसे धोखाधड़ी से अगर इस

देश की आजादी आई हो तो वो आजादी, आजादी है कहाँ ? और इसीलिए गाँधी जी (महात्मा गाँधी) 14 अगस्त 1947 की रात को दिल्ली में नहीं आये थे | वो नोआखाली में थे | और कोंग्रेस के बड़े नेता

गाँधी जी को बुलाने के लिए गए थे कि बापू चलिए आप | गाँधी जी ने मना कर दिया था | क्यों ? गाँधी जी कहते थे कि मै मानता नहीं कि कोई आजादी आ रही है | और गाँधी जी ने स्पस्ट कह दिया

था कि ये आजादी नहीं आ रही है सत्ता के हस्तांतरण का समझौता हो रहा है | और गाँधी जी ने नोआखाली से प्रेस विज्ञप्ति जारी की थी |

उस प्रेस स्टेटमेंट के पहले ही वाक्य में गाँधी जी ने ये कहा कि मै हिन्दुस्तान के उन करोडो लोगों को ये सन्देश देना चाहता हु कि ये जो तथाकथित आजादी (So Called Freedom) आ रही है ये मै नहीं

लाया | ये सत्ता के लालची लोग सत्ता के हस्तांतरण के चक्कर में फंस कर लाये है | मै मानता नहीं कि इस देश में कोई आजादी आई है | और 14 अगस्त 1947 की रात को गाँधी जी दिल्ली में नहीं थे

नोआखाली में थे | माने भारत की राजनीति का सबसे बड़ा पुरोधा जिसने हिन्दुस्तान की आज़ादी की लड़ाई की नीव रखी हो वो आदमी 14 अगस्त 1947 की रात को दिल्ली में मौजूद नहीं था | क्यों ?

इसका अर्थ है कि गाँधी जी इससे सहमत नहीं थे | (नोआखाली के दंगे तो एक बहाना था असल बात तो ये सत्ता का हस्तांतरण ही था) और 14 अगस्त 1947 की रात को जो कुछ हुआ है वो आजादी

नहीं आई .... ट्रान्सफर ऑफ़ पॉवर का एग्रीमेंट लागू हुआ था पंडित नेहरु और अंग्रेजी सरकार के बीच में | अब शर्तों की बात करता हूँ , सब का जिक्र करना तो संभव नहीं है लेकिन कुछ महत्वपूर्ण

शर्तों की जिक्र जरूर करूंगा जिसे एक आम भारतीय जानता है और उनसे परिचित है
इस संधि की शर्तों के मुताबिक हम आज भी अंग्रेजों के अधीन/मातहत ही हैं | वो एक शब्द आप सब

सुनते हैं न Commonwealth Nations | अभी कुछ दिन पहले दिल्ली में Commonwealth Game हुए थे आप सब को याद होगा ही और उसी में बहुत बड़ा घोटाला भी हुआ है | ये Commonwealth

का मतलब होता है समान सम्पति | किसकी समान सम्पति ? ब्रिटेन की रानी की समान सम्पति | आप जानते हैं ब्रिटेन की महारानी हमारे भारत की भी महारानी है और वो आज भी भारत की

नागरिक है और हमारे जैसे 71 देशों की महारानी है वो | Commonwealth में 71 देश है और इन सभी 71 देशों में जाने के लिए ब्रिटेन की महारानी को वीजा की जरूरत नहीं होती है क्योंकि वो अपने

ही देश में जा रही है लेकिन भारत के प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति को ब्रिटेन में जाने के लिए वीजा की जरूरत होती है क्योंकि वो दुसरे देश में जा रहे हैं | मतलब इसका निकाले तो ये हुआ कि या तो

ब्रिटेन की महारानी भारत की नागरिक है या फिर भारत आज भी ब्रिटेन का उपनिवेश है इसलिए ब्रिटेन की रानी को पासपोर्ट और वीजा की जरूरत नहीं होती है अगर दोनों बाते सही है तो 15 अगस्त

1947 को हमारी आज़ादी की बात कही जाती है वो झूठ है | और Commonwealth Nations में हमारी एंट्री जो है वो एक Dominion State के रूप में है न क़ि Independent Nation के रूप में| इस

देश में प्रोटोकोल है क़ि जब भी नए राष्ट्रपति बनेंगे तो 21 तोपों की सलामी दी जाएगी उसके अलावा किसी को भी नहीं | लेकिन ब्रिटेन की महारानी आती है तो उनको भी 21 तोपों की सलामी दी जाती

है, इसका क्या मतलब है? और पिछली बार ब्रिटेन की महारानी यहाँ आयी थी तो एक निमंत्रण पत्र छपा था और उस निमंत्रण पत्र में ऊपर जो नाम था वो ब्रिटेन की महारानी का था और उसके नीचे

भारत के राष्ट्रपति का नाम था मतलब हमारे देश का राष्ट्रपति देश का प्रथम नागरिक नहीं है | ये है राजनितिक गुलामी, हम कैसे माने क़ि हम एक स्वतंत्र देश में रह रहे हैं | एक शब्द आप सुनते होंगे

High Commission ये अंग्रेजों का एक गुलाम देश दुसरे गुलाम देश के यहाँ खोलता है लेकिन इसे Embassy नहीं कहा जाता | एक मानसिक गुलामी का उदहारण भी देखिये ....... हमारे यहाँ के

अख़बारों में आप देखते होंगे क़ि कैसे शब्द प्रयोग होते हैं - (ब्रिटेन की महारानी नहीं) महारानी एलिज़ाबेथ, (ब्रिटेन के प्रिन्स चार्ल्स नहीं) प्रिन्स चार्ल्स , (ब्रिटेन की प्रिंसेस नहीं) प्रिंसेस डैना (अब

तो वो हैं नहीं), अब तो एक और प्रिन्स विलियम भी आ गए है |
भारत का नाम INDIA रहेगा और सारी दुनिया में भारत का नाम इंडिया प्रचारित किया जायेगा और

सारे सरकारी दस्तावेजों में इसे इंडिया के ही नाम से संबोधित किया जायेगा | हमारे और आपके लिए ये भारत है लेकिन दस्तावेजों में ये इंडिया है | संविधान के प्रस्तावना में ये लिखा गया है

"India that is Bharat " जब क़ि होना ये चाहिए था "Bharat that was India " लेकिन दुर्भाग्य इस देश का क़ि ये भारत के जगह इंडिया हो गया | ये इसी संधि के शर्तों में से एक है | अब हम

भारत के लोग जो इंडिया कहते हैं वो कहीं से भी भारत नहीं है | कुछ दिन पहले मैं एक लेख पढ़ रहा था अब किसका था याद नहीं आ रहा है उसमे उस व्यक्ति ने बताया था कि इंडिया का नाम बदल के

भारत कर दिया जाये तो इस देश में आश्चर्यजनक बदलाव आ जायेगा और ये विश्व की बड़ी शक्ति बन जायेगा अब उस शख्स के बात में कितनी सच्चाई है मैं नहीं जानता, लेकिन भारत जब तक

भारत था तब तक तो दुनिया में सबसे आगे था और ये जब से इंडिया हुआ है तब से पीछे, पीछे और पीछे ही होता जा रहा है |

भारत के संसद में वन्दे मातरम नहीं गया जायेगा अगले 50 वर्षों तक यानि 1997 तक | 1997 में पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर ने इस मुद्दे को संसद में उठाया तब जाकर पहली बार इस तथाकथित

आजाद देश की संसद में वन्देमातरम गाया गया | 50 वर्षों तक नहीं गाया गया क्योंकि ये भी इसी संधि की शर्तों में से एक है | और वन्देमातरम को ले के मुसलमानों में जो भ्रम फैलाया गया वो

अंग्रेजों के दिशानिर्देश पर ही हुआ था | इस गीत में कुछ भी ऐसा आपत्तिजनक नहीं है जो मुसलमानों के दिल को ठेस पहुचाये | आपत्तिजनक तो जन,गन,मन में है जिसमे एक शख्स को

भारत भाग्यविधाता यानि भारत के हर व्यक्ति का भगवान बताया गया है या कहें भगवान से भी बढ़कर |

इस संधि की शर्तों के अनुसार सुभाष चन्द्र बोस को जिन्दा या मुर्दा अंग्रेजों के हवाले करना था | यही वजह रही क़ि सुभाष चन्द्र बोस अपने देश के लिए लापता रहे और कहाँ मर खप गए ये आज तक

किसी को मालूम नहीं है | समय समय पर कई अफवाहें फैली लेकिन सुभाष चन्द्र बोस का पता नहीं लगा और न ही किसी ने उनको ढूँढने में रूचि दिखाई | मतलब भारत का एक महान स्वतंत्रता

सेनानी अपने ही देश के लिए बेगाना हो गया | सुभाष चन्द्र बोस ने आजाद हिंद फौज बनाई थी ये तो आप सब लोगों को मालूम होगा ही लेकिन महत्वपूर्ण बात ये है क़ि ये 1942 में बनाया गया था और

उसी समय द्वितीय विश्वयुद्ध चल रहा था और सुभाष चन्द्र बोस ने इस काम में जर्मन और जापानी लोगों से मदद ली थी जो कि अंग्रेजो के दुश्मन थे और इस आजाद हिंद फौज ने अंग्रेजों को

सबसे ज्यादा नुकसान पहुँचाया था | और जर्मनी के हिटलर और इंग्लैंड के एटली और चर्चिल के व्यक्तिगत विवादों की वजह से ये द्वितीय विश्वयुद्ध हुआ था और दोनों देश एक दुसरे के कट्टर

दुश्मन थे | एक दुश्मन देश की मदद से सुभाष चन्द्र बोस ने अंग्रेजों के नाकों चने चबवा दिए थे | एक तो अंग्रेज उधर विश्वयुद्ध में लगे थे दूसरी तरफ उन्हें भारत में भी सुभाष चन्द्र बोस की वजह से

परेशानियों का सामना करना पड़ रहा था | इसलिए वे सुभाष चन्द्र बोस के दुश्मन थे |
इस संधि की शर्तों के अनुसार भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद, अशफाकुल्लाह, रामप्रसाद विस्मिल

जैसे लोग आतंकवादी थे और यही हमारे syllabus में पढाया जाता था बहुत दिनों तक | और अभी एक महीने पहले तक ICSE बोर्ड के किताबों में भगत सिंह को आतंकवादी ही बताया जा रहा था, वो

तो भला हो कुछ लोगों का जिन्होंने अदालत में एक केस किया और अदालत ने इसे हटाने का आदेश दिया है (ये समाचार मैंने इन्टरनेट पर ही अभी कुछ दिन पहले देखा था) |

आप भारत के सभी बड़े रेलवे स्टेशन पर एक किताब की दुकान देखते होंगे "व्हीलर बुक स्टोर" वो इसी संधि की शर्तों के अनुसार है | ये व्हीलर कौन था ? ये व्हीलर सबसे बड़ा अत्याचारी था | इसने

इस देश क़ि हजारों माँ, बहन और बेटियों के साथ बलात्कार किया था | इसने किसानों पर सबसे ज्यादा गोलियां चलवाई थी | 1857 की क्रांति के बाद कानपुर के नजदीक बिठुर में व्हीलर और नील

नामक दो अंग्रजों ने यहाँ के सभी 24 हजार लोगों को जान से मरवा दिया था चाहे वो गोदी का बच्चा हो या मरणासन्न हालत में पड़ा कोई बुड्ढा | इस व्हीलर के नाम से इंग्लैंड में एक एजेंसी शुरू हुई थी

और वही भारत में आ गयी | भारत आजाद हुआ तो ये ख़त्म होना चाहिए था, नहीं तो कम से कम नाम भी बदल देते | लेकिन वो नहीं बदला गया क्योंकि ये इस संधि में है |

इस संधि की शर्तों के अनुसार अंग्रेज देश छोड़ के चले जायेगे लेकिन इस देश में कोई भी कानून चाहे वो किसी क्षेत्र में हो नहीं बदला जायेगा | इसलिए आज भी इस देश में 34735 कानून वैसे के वैसे

चल रहे हैं जैसे अंग्रेजों के समय चलता था | Indian Police Act, Indian Civil Services Act (अब इसका नाम है Indian Civil Administrative Act), Indian Penal Code (Ireland में भी IPC

चलता है और Ireland में जहाँ "I" का मतलब Irish है वही भारत के IPC में "I" का मतलब Indian है बाकि सब के सब कंटेंट एक ही है, कौमा और फुल स्टॉप का भी अंतर नहीं है) Indian

Citizenship Act, Indian Advocates Act, Indian Education Act, Land Acquisition Act, Criminal Procedure Act, Indian Evidence Act, Indian Income Tax Act, Indian Forest

Act, Indian Agricultural Price Commission Act सब के सब आज भी वैसे ही चल रहे हैं बिना फुल स्टॉप और कौमा बदले हुए |

इस संधि के अनुसार अंग्रेजों द्वारा बनाये गए भवन जैसे के तैसे रखे जायेंगे | शहर का नाम, सड़क का नाम सब के सब वैसे ही रखे जायेंगे | आज देश का संसद भवन, सुप्रीम कोर्ट, हाई कोर्ट, राष्ट्रपति

भवन कितने नाम गिनाऊँ सब के सब वैसे ही खड़े हैं और हमें मुंह चिढ़ा रहे हैं | लार्ड डलहौजी के नाम पर डलहौजी शहर है , वास्को डी गामा नामक शहर है (हाला क़ि वो पुर्तगाली था ) रिपन रोड,

कर्जन रोड, मेयो रोड, बेंटिक रोड, (पटना में) फ्रेजर रोड, बेली रोड, ऐसे हजारों भवन और रोड हैं, सब के सब वैसे के वैसे ही हैं | आप भी अपने शहर में देखिएगा वहां भी कोई न कोई भवन, सड़क उन

लोगों के नाम से होंगे | हमारे गुजरात में एक शहर है सूरत, इस सूरत शहर में एक बिल्डिंग है उसका नाम है कूपर विला | अंग्रेजों को जब जहाँगीर ने व्यापार का लाइसेंस दिया था तो सबसे पहले वो

सूरत में आये थे और सूरत में उन्होंने इस बिल्डिंग का निर्माण किया था | ये गुलामी का पहला अध्याय आज तक सूरत शहर में खड़ा है |

हमारे यहाँ शिक्षा व्यवस्था अंग्रेजों की है क्योंकि ये इस संधि में लिखा है और मजे क़ि बात ये है क़ि अंग्रेजों ने हमारे यहाँ एक शिक्षा व्यवस्था दी और अपने यहाँ अलग किस्म क़ि शिक्षा व्यवस्था रखी है

| हमारे यहाँ शिक्षा में डिग्री का महत्व है और उनके यहाँ ठीक उल्टा है | मेरे पास ज्ञान है और मैं कोई

अविष्कार करता हूँ तो भारत में पूछा जायेगा क़ि तुम्हारे पास कौन सी डिग्री है ? अगर नहीं है तो मेरे अविष्कार और ज्ञान का कोई मतलब नहीं है | जबकि उनके यहाँ ऐसा बिलकुल नहीं है आप अगर

कोई अविष्कार करते हैं और आपके पास ज्ञान है लेकिन कोई डिग्री नहीं हैं तो कोई बात नहीं आपको प्रोत्साहित किया जायेगा | नोबेल पुरस्कार पाने के लिए आपको डिग्री की जरूरत नहीं होती है | हमारे

शिक्षा तंत्र को अंग्रेजों ने डिग्री में बांध दिया था जो आज भी वैसे के वैसा ही चल रहा है | ये जो 30 नंबर का पास मार्क्स आप देखते हैं वो उसी शिक्षा व्यवस्था क़ि देन है, मतलब ये है क़ि आप भले ही

70 नंबर में फेल है लेकिन 30 नंबर लाये है तो पास हैं, ऐसा शिक्षा तंत्र से सिर्फ गदहे ही पैदा हो सकते हैं और यही अंग्रेज चाहते थे | आप देखते होंगे क़ि हमारे देश में एक विषय चलता है जिसका

नाम है Anthropology | जानते है इसमें क्या पढाया जाता है ? इसमें गुलाम लोगों क़ि मानसिक अवस्था के बारे में पढाया जाता है | और ये अंग्रेजों ने ही इस देश में शुरू किया था और आज आज़ादी

के 64 साल बाद भी ये इस देश के विश्वविद्यालयों में पढाया जाता है और यहाँ तक क़ि सिविल सर्विस की परीक्षा में भी ये चलता है |

इस संधि की शर्तों के हिसाब से हमारे देश में आयुर्वेद को कोई सहयोग नहीं दिया जायेगा मतलब हमारे देश की विद्या हमारे ही देश में ख़त्म हो जाये ये साजिस की गयी | आयुर्वेद को अंग्रेजों ने नष्ट

करने का भरसक प्रयास किया था लेकिन ऐसा कर नहीं पाए | दुनिया में जितने भी पैथी हैं उनमे ये होता है क़ि पहले आप बीमार हों तो आपका इलाज होगा लेकिन आयुर्वेद एक ऐसी विद्या है जिसमे

कहा जाता है क़ि आप बीमार ही मत पड़िए | आपको मैं एक सच्ची घटना बताता हूँ -जोर्ज वाशिंगटन जो क़ि अमेरिका का पहला राष्ट्रपति था वो दिसम्बर 1799 में बीमार पड़ा और जब उसका बुखार

ठीक नहीं हो रहा था तो उसके डाक्टरों ने कहा क़ि इनके शरीर का खून गन्दा हो गया है जब इसको निकाला जायेगा तो ये बुखार ठीक होगा और उसके दोनों हाथों क़ि नसें डाक्टरों ने काट दी और खून

निकल जाने की वजह से जोर्ज वाशिंगटन मर गया | ये घटना 1799 की है और 1780 में एक अंग्रेज भारत आया था और यहाँ से प्लास्टिक सर्जरी सीख के गया था | मतलब कहने का ये है क़ि हमारे

देश का चिकित्सा विज्ञान कितना विकसित था उस समय | और ये सब आयुर्वेद की वजह से था और उसी आयुर्वेद को आज हमारे सरकार ने हाशिये पर पंहुचा दिया है |

इस संधि के हिसाब से हमारे देश में गुरुकुल संस्कृति को कोई प्रोत्साहन नहीं दिया जायेगा | हमारे

देश के समृद्धि और यहाँ मौजूद उच्च तकनीक की वजह ये गुरुकुल ही थे | और अंग्रेजों ने सबसे पहले इस देश की गुरुकुल परंपरा को ही तोडा था, मैं यहाँ लार्ड मेकॉले की एक उक्ति को यहाँ बताना

चाहूँगा जो उसने 2 फ़रवरी 1835 को ब्रिटिश संसद में दिया था, उसने कहा था ""I have traveled across the length and breadth of India and have not seen one person who is a

beggar, who is a thief, such wealth I have seen in this country, such high moral values, people of such caliber, that I do not think we would ever conquer this

country, unless we break the very backbone of this nation, which is her spiritual and

cultural heritage, and, therefore, I propose that we replace her old and ancient
education system, her culture, for if the Indians think that all that is foreign and

English is good and greater than their own, they will lose their self esteem, their
native culture and they will become what we want them, a truly dominated nation" |

गुरुकुल का मतलब हम लोग केवल वेद, पुराण,उपनिषद ही समझते हैं जो की हमारी मुर्खता है
अगर आज की भाषा में कहूं तो ये गुरुकुल जो होते थे वो सब के सब Higher Learning Institute
हुआ करते थे |

इस संधि में एक और खास बात है | इसमें कहा गया है क़ि अगर हमारे देश के (भारत के) अदालत में कोई ऐसा मुक़दमा आ जाये जिसके फैसले के लिए कोई कानून न हो इस देश में या उसके फैसले

को लेकर संबिधान में भी कोई जानकारी न हो तो साफ़ साफ़ संधि में लिखा गया है क़ि वो सारे

मुकदमों का फैसला अंग्रेजों के न्याय पद्धति के आदर्शों के आधार पर ही होगा, भारतीय न्याय पद्धति का आदर्श उसमे लागू नहीं होगा | कितनी शर्मनाक स्थिति है ये क़ि हमें अभी भी अंग्रेजों का ही अनुसरण करना होगा |

भारत में आज़ादी की लड़ाई हुई तो वो ईस्ट इंडिया कम्पनी के खिलाफ था और संधि के हिसाब से ईस्ट इंडिया कम्पनी को भारत छोड़ के जाना था और वो चली भी गयी लेकिन इस संधि में ये भी है

क़ि ईस्ट इंडिया कम्पनी तो जाएगी भारत से लेकिन बाकि 126 विदेशी कंपनियां भारत में रहेंगी और भारत सरकार उनको पूरा संरक्षण देगी | और उसी का नतीजा है क़ि ब्रुक बोंड, लिप्टन, बाटा,

हिंदुस्तान लीवर (अब हिंदुस्तान यूनिलीवर) जैसी 126 कंपनियां आज़ादी के बाद इस देश में बची रह गयी और लुटती रही और आज भी वो सिलसिला जारी है |

अंग्रेजी का स्थान अंग्रेजों के जाने के बाद वैसे ही रहेगा भारत में जैसा क़ि अभी (1946 में) है और ये भी इसी संधि का हिस्सा है | आप देखिये क़ि हमारे देश में, संसद में, न्यायपालिका में, कार्यालयों में

हर कहीं अंग्रेजी, अंग्रेजी और अंग्रेजी है जब क़ि इस देश में 99% लोगों को अंग्रेजी नहीं आती है | और उन 1% लोगों क़ि हालत देखिये क़ि उन्हें मालूम ही नहीं रहता है क़ि उनको पढना क्या है और UNO

में जा के भारत के जगह पुर्तगाल का भाषण पढ़ जाते हैं |
आप में से बहुत लोगों को याद होगा क़ि हमारे देश में आजादी के 50 साल बाद तक संसद में वार्षिक

बजट शाम को 5:00 बजे पेश किया जाता था | जानते है क्यों ? क्योंकि जब हमारे देश में शाम के 5:00 बजते हैं तो लन्दन में सुबह के 11:30 बजते हैं और अंग्रेज अपनी सुविधा से उनको सुन सके

और उस बजट की समीक्षा कर सके | इतनी गुलामी में रहा है ये देश | ये भी इसी संधि का हिस्सा है |
1939 में द्वितीय विश्व युद्ध शुरू हुआ तो अंग्रेजों ने भारत में राशन कार्ड का सिस्टम शुरू किया

क्योंकि द्वितीय विश्वयुद्ध में अंग्रेजों को अनाज क़ि जरूरत थी और वे ये अनाज भारत से चाहते थे | इसीलिए उन्होंने यहाँ जनवितरण प्रणाली और राशन कार्ड क़ि शुरुआत क़ि | वो प्रणाली आज भी

लागू है इस देश में क्योंकि वो इस संधि में है | और इस राशन कार्ड को पहचान पत्र के रूप में इस्तेमाल उसी समय शुरू किया गया और वो आज भी जारी है | जिनके पास राशन कार्ड होता था

उन्हें ही वोट देने का अधिकार होता था | आज भी देखिये राशन कार्ड ही मुख्य पहचान पत्र है इस देश में |

अंग्रेजों के आने के पहले इस देश में गायों को काटने का कोई कत्लखाना नहीं था | मुगलों के समय तो ये कानून था क़ि कोई अगर गाय को काट दे तो उसका हाथ काट दिया जाता था | अंग्रेज यहाँ आये

तो उन्होंने पहली बार कलकत्ता में गाय काटने का कत्लखाना शुरू किया, पहला शराबखाना शुरू किया, पहला वेश्यालय शुरू किया और इस देश में जहाँ जहाँ अंग्रेजों की छावनी हुआ करती थी वहां

वहां वेश्याघर बनाये गए, वहां वहां शराबखाना खुला, वहां वहां गाय के काटने के लिए कत्लखाना खुला | ऐसे पुरे देश में 355 छावनियां थी उन अंग्रेजों के | अब ये सब क्यों बनाये गए थे ये आप सब

आसानी से समझ सकते हैं | अंग्रेजों के जाने के बाद ये सब ख़त्म हो जाना चाहिए था लेकिन नहीं हुआ क्योंक़ि ये भी इसी संधि में है |

हमारे देश में जो संसदीय लोकतंत्र है वो दरअसल अंग्रेजों का वेस्टमिन्स्टर सिस्टम है | ये अंग्रेजो के

इंग्लैंड क़ि संसदीय प्रणाली है | ये कहीं से भी न संसदीय है और न ही लोकतान्त्रिक है| लेकिन इस देश में वही सिस्टम है क्योंकि वो इस संधि में कहा गया है | और इसी वेस्टमिन्स्टर सिस्टम को

महात्मा गाँधी बाँझ और वेश्या कहते थे (मतलब आप समझ गए होंगे) |

ऐसी हजारों शर्तें हैं | मैंने अभी जितना जरूरी समझा उतना लिखा है | मतलब यही है क़ि इस देश में जो कुछ भी अभी चल रहा है वो सब अंग्रेजों का है हमारा कुछ नहीं है | अब आप के मन में ये सवाल

हो रहा होगा क़ि पहले के राजाओं को तो अंग्रेजी नहीं आती थी तो वो खतरनाक संधियों (साजिस) के जाल में फँस कर अपना राज्य गवां बैठे लेकिन आज़ादी के समय वाले नेताओं को तो अच्छी अंग्रेजी

आती थी फिर वो कैसे इन संधियों के जाल में फँस गए | इसका कारण थोडा भिन्न है क्योंकि आज़ादी के समय वाले नेता अंग्रेजों को अपना आदर्श मानते थे इसलिए उन्होंने जानबूझ कर ये

संधि क़ि थी | वो मानते थे क़ि अंग्रेजों से बढियां कोई नहीं है इस दुनिया में | भारत की आज़ादी के समय के नेताओं के भाषण आप पढेंगे तो आप पाएंगे क़ि वो केवल देखने में ही भारतीय थे लेकिन

मन,कर्म और वचन से अंग्रेज ही थे | वे कहते थे क़ि सारा आदर्श है तो अंग्रेजों में, आदर्श शिक्षा व्यवस्था है तो अंग्रेजों की, आदर्श अर्थव्यवस्था है तो अंग्रेजों की, आदर्श चिकित्सा व्यवस्था है तो

अंग्रेजों की, आदर्श कृषि व्यवस्था है तो अंग्रेजों की, आदर्श न्याय व्यवस्था है तो अंग्रेजों की, आदर्श कानून व्यवस्था है तो अंग्रेजों की | हमारे आज़ादी के समय के नेताओं को अंग्रेजों से बड़ा आदर्श कोई

दिखता नहीं था और वे ताल ठोक ठोक कर कहते थे क़ि हमें भारत अंग्रेजों जैसा बनाना है | अंग्रेज हमें जिस रस्ते पर चलाएंगे उसी रास्ते पर हम चलेंगे | इसीलिए वे ऐसी मूर्खतापूर्ण संधियों में फंसे |

अगर आप अभी तक उन्हें देशभक्त मान रहे थे तो ये भ्रम दिल से निकाल दीजिये | और आप अगर समझ रहे हैं क़ि वो ABC पार्टी के नेता ख़राब थे या हैं तो XYZ पार्टी के नेता भी दूध के धुले नहीं हैं |

आप किसी को भी अच्छा मत समझिएगा क्योंक़ि आज़ादी के बाद के इन 64 सालों में सब ने चाहे वो राष्ट्रीय पार्टी हो या प्रादेशिक पार्टी, प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से राष्ट्रीय स्तर पर सत्ता का स्वाद तो

सबो ने चखा ही है | खैर ...............

तो भारत क़ि गुलामी जो अंग्रेजों के ज़माने में थी, अंग्रेजों के जाने के 64 साल बाद आज 2011 में जस क़ि तस है क्योंकि हमने संधि कर रखी है और देश को इन खतरनाक संधियों के मकडजाल में

फंसा रखा है | बहुत दुःख होता है अपने देश के बारे जानकार और सोच कर | मैं ये सब कोई ख़ुशी से नहीं लिखता हूँ ये मेरे दिल का दर्द होता है जो मैं आप लोगों से शेयर करता हूँ |

ये सब बदलना जरूरी है लेकिन हमें सरकार नहीं व्यवस्था बदलनी होगी और आप अगर सोच रहे हैं क़ि कोई मसीहा आएगा और सब बदल देगा तो आप ग़लतफ़हमी में जी रहे हैं | कोई हनुमान जी,

कोई राम जी, या कोई कृष्ण जी नहीं आने वाले | आपको और हमको ही ये सारे अवतार में आना होगा, हमें ही सड़कों पर उतरना होगा और और इस व्यवस्था को जड मूल से समाप्त करना होगा |

भगवान भी उसी की मदद करते हैं जो अपनी मदद स्वयं करता है |

ब्रिटेन की संसद द्वारा पास किये गए "भारत की आज़ादी का कानून-1947" की छायाप्रति संलग्न है- pdf Copy of "Indian Independance Act-1947"

यह वही कानून जिसकी वजह से भारत का बटवारा हुआ और इसके बारे में हमें कभी भी नहीं बताया गया| इसमे साफ-साफ़ लिखा है कि इंडिया और पाकिस्तान ब्रिटेन की सत्ता के अधीन होंगे और इसी में लिखा है कि इन अधीन राज्यों का गठन 15 अगस्त-1947 को किया जायेगा| इसी के आधार पर "ट्रांसफर ऑफ़ पॉवर अग्रीमेंट" हुआ था जिस पर नेहरू और माउन्ट बेटन ने 14 अगस्त 1947 की रात को हस्ताक्षर किया था |

इस सच को सभी भारतियों तक पहुँचा कर अपना राष्ट्र धर्म निभाएं वन्देमातरम !

भारत माता की जय हो !http://www.scribd.com/doc/72936488/Indian-Independence-Act-14-AUG-1947

और अधिक जानकारी के लिए इस विडियो को सुने ! भारतीय आज़ादी का इतिहास >http://www.youtube.com/watch?v=VV0nMR3AIpU

इतने लम्बे पत्रलेख को आपने धैर्यपूर्वक पढ़ा इसके लिए आपका धन्यवाद् | और अच्छा लगा हो तो इसे फॉरवर्ड कीजिये, और ज्ञान का प्रवाह होते रहने दीजिये